Laxmi Anupam Sulekh Abhyas Part A

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व्याकरण से भाषा की गति नहीं रुकती, जैसा पहले कहा गया है; और न व्याकरण से वह बदलती ही है। किसी देश प्रदेश का भूगोल क्या वहाँ की गतिविधि को रोकता बदलता है? भाषा तो अपनी गति से चलती है। व्याकरण उसका (गति का) न नियामक है, न अवरोधक ही। हाँ, सहस्रों वर्ष बाद जब कोई भाषा किसी दूसरे रूप में आ जाती है, तब वह (पुराने रूप का) व्याकरण इस (नए रूप) के लिए अनुपयोगी हो जाते है। तब इस (नए रूप) का पृथक् व्याकरण बनेगा। वह पुराना व्याकरण तब भी बेकार न हो जाएगा; उस पुरानी भाषा का (भाषा के उस पुराने रूप का) यथार्थ परिचय देता रहेगा। यह साधारण उपयोगिता नहीं है। हाँ, यदि कोई किसी भाषा का व्याकरण अपने अज्ञान से ग़लत बना दे, तो वह (व्याकरण) ही ग़लत होगा। भाषा उसका अनुगमन न करेगी और यों उस व्याकरण के नियमों का उल्लंघन करने पर भी भाषा को कोई ग़लत न कह देगा। ' संस्कृत के एक वैयाकरण ने "पुंसु" के साथ "पुंक्षु" पद को भी नियमबद्ध किया; परंतु वह वहीं धरा रह गया। कभी किसी ने "पुंक्षु" नहीं लिखा बोला। पाणिनि ने "विश्रम" शब्द साधु बतलाया; "श्रम" की ही तरह "विश्रम"। परंतु संस्कृत साहित्य में "विश्राम" चलता रहा; चल रहा है और चलता रहेगा। भाषा की प्रवृत्ति है। जब पाणिनि ही भाषा के प्रवाह को न रोक सके, तो दूसरों की गिनती ही क्या।

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Product NameLaxmi Anupam Sulekh Abhyas Part A
ISBN / Product Code9789352740123
EditionNEP Edition
Board : K12CBSE Board (NCERT)
School BooksPractice / Workbooks
Select Books by ClassNursery/LKG
Subject : School BooksHindi
AuthorAlya Gupta
BindingPaperback
PublisherLaxmi Publications
HSN Code4901
Company DetailsPublished by LAXMI PUBLICATIONS(P) LTD 113, GOLDEN HOUSE, DARYA GANJ, NEW DELHI - 110002, INDIA Telephone :+91-11-4353 2500, 4353 2501 Fax :+91-11-2325 2572, 4353 2528 E-mail: info@laxmipublications.com
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